‘जय जगन्नाथ’ के जयकारों से गूंजा गायत्री नगर..जगन्नाथ मंदिर में धूमधाम से मनाया गया नुआखाई पर्व, हुई भव्य आरती

उर्वशी मिश्रा, न्यूज़ राइटर, रायपुर

जय जगन्नाथ के जयकारों के साथ आज फिर गायत्री नगर स्थित प्रभु जगन्नाथ जी के मंदिर में अलौकिक छटा देखने को तब मिली, जब नुआख़ाई के अवसर पर विधायक पुरंदर मिश्रा ने विशेष आरती की।

छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर के शंकर नगर, गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में धूमधाम से नुआखाई पर्व मनाया गया। इस दौरान रायपुर उत्तर विधायक एवं जगन्नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा के नेतृत्व में पत्रकार साथियो एवं दर्शन करने आये आम जनमानस के साथ भगवान श्री जगन्नाथ जी का पूजा अर्चना कर धूम धाम से नुआखाई पर्व मनाया गया।

विधायक पुरन्दर मिश्रा ने नुआखाई की जानकारी देते हुए बताया कि नुआखाई ओड़िशा का प्रमुख लोक-पर्व है। यह पर्व पश्चिम ओड़िशा के सीमावर्ती छत्तीसगढ़ में भी मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, महासमुन्द, रायगढ़, जशपुर, धमतरी सहित बस्तर संभाग के कुछ जिले भी इनमें शामिल हैं, जहाँ पड़ोसी राज्य की तरह उत्कल संस्कृति से जुड़े लाखों लोग इसे पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ उत्साह से मनाते हैं। नुआखाई भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है।

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समझिये नुआख़ाई का शाब्दिक अर्थ
‘‘नुआखाई‘‘ का शाब्दिक अर्थ है ‘‘नया खाना‘‘ (नुआ = नया, खाई = खाना)। खेतों में खड़ी नई फसल के स्वागत में यह मुख्य रूप से ओड़िशा के किसानों और खेतिहर श्रमिकों द्वारा मनाया जाने वाला पारम्परिक त्यौहार है, लेकिन समाज के सभी वर्ग इसे उत्साह के साथ मनाते हैं। लोग ‘नुआखाई जुहार’ और ‘भेंटघाट’ के लिए एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं। पहले यह त्यौहार भादों के शुक्ल पक्ष में अलग-अलग गाँवों में अलग-अलग तिथियों में सुविधानुसार मनाया जाता था। गाँव के मुख्य पुजारी इसके लिए तिथि और मुहूर्त तय करते थे, लेकिन अब नुआखाई का दिन और समय सम्बलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर के पुजारी तय करते हैं। इस दिन गाँवों में लोग अपने ग्राम देवता या ग्राम देवी की भी पूजा करते हैं। नुआखाई के एक दिन पहले नये धान की बालियों के साथ चुड़ा (चिवड़ा ), मूंग और परसा पत्तों और पूजा के फूल खरीद लिए जाते हैं। रमईदेव ने लोगों के जीवन में स्थायित्व लाने के लिए उन्हें स्थायी खेती के लिए प्रोत्साहित करने की सोची और इसके लिए धार्मिक विधि-विधान के साथ नुआखाई पर्व मनाने की शुरुआत की। कालान्तर में यह पश्चिम ओड़िशा के लोक जीवन का एक प्रमुख पर्व बन गया। नये धान के चावल को पकाकर तरह-तरह के पारम्परिक व्यंजनों के साथ घरों में और सामूहिक रूप से भी ‘‘नवान्हभोज‘‘ (नवान्नभोज) यानी नये अन्न का भोज बड़े चाव से किया जाता है। सबसे पहले आराध्य देवी-देवताओं को भोग लगाया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद ‘‘नुआखाई‘‘ का सह-भोज होता है।

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क्या होता है इस दौरान?
नुआखाई त्यौहार के आगमन के पहले लोग अपने-अपने घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई करके नई फसल के रूप में देवी अन्नपूर्णा के स्वागत की तैयारी करते हैं। परिवार के सदस्यों के लिए नये कपड़े खरीदे जाते हैं। उड़िया लोग एक-दूसरे के परिवारों को नवान्ह भोज के आयोजन में स्नेहपूर्वक आमंत्रित करते हैं। इस विशेष अवसर के लिए लोग नये वस्त्रों में सज-धजकर एक-दूसरे को नुआखाई जुहार करने आते-जाते हैं। गाँवों से लेकर शहरों तक खूब चहल-पहल और खूब रौनक रहती है। सार्वजनिक आयोजनों में पश्चिम ओड़िशा की लोक संस्कृति पर आधारित पारम्परिक लोक नृत्यों की धूम रहती है। इस त्यौहार का उद्देश्य सामाजिक बंधन का जश्न मनाना और पारिवारिक संबंधों को बढ़ावा देना है। यह दिन किसानों द्वारा गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है। देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग इस दिन अपने मूल स्थानों पर आते हैं और नए कपड़े पहनकर, पूजा अर्चना करके तथा विशेष भोजन तैयार करके त्यौहार मनाते हैं।

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